युद्ध जो आ रहा है
पहला युद्ध नहीं है!
इससे पहले भी युद्ध हुए थे!
पिछला युद्ध जब ख़त्म हुआ
तब कुछ विजेता बने और कुछ विजित
विजितों के बीच आम आदमी भूखों मरा
विजेताओं के बीच भी मरा वह भूखा ही!
यह कविता महान जर्मन कवि ब्रेष्ट ने 1936-38 के दौर में लिखी थी. उस समय तक दूसरे अतिविनाशकारी विश्वयुद्ध की भूमिका तैयार हो चुकी थी. जर्मन, इटली, जापान आदि देशों में राष्ट्रवादी भावनाएं उफान पर थीं. युद्ध हुआ. परिणाम भयावह थे. ऐसे, जिनकी किसी ने कभी कल्पना तक न की थी. दोनों महायुद्धों में 9 करोड़ लोगों की मौत हुई थी. उससे कई गुना घायल. महामारी और विस्थापन के शिकार हुए थे सो अलग. युद्ध से जितने घर-संपत्ति, खेत, व्यवसाय नष्ट हुए, जमीनें बंजर हुईं-उनका आकलन असंभव है. यही कारण है कि आरंभ में युद्धोन्माद में डूबे, हुंकार रहे देश, युद्ध समाप्त होते ही शांति राग अलापने लगे थे. भीषण तबाही ने दुनिया को कुछ वर्षों के लिए ही सही, एक-साथ रहना सिखा दिया था.
भारत इन दिनों ऐसे ही दौर से गुजर रहा है. उन दिनों जर्मनी, जापान और इटली में तानाशाही सरकारें थीं. साम्राज्यवादी लालसाएं हुंकार रही थीं. भारत में जनता द्वारा चुनी गई सरकार है. कहा जा सकता है कि हालात अलग-अलग है. पर क्या सचमुच ऐसा ही है! कुछ है जो वर्तमान सरकार को उन युद्धलोलुप निरंकुश तानाशाहों से जोड़ता है. जो लोग इन दिनों सरकार चला रहे हैं, उनका लोकतंत्र में विश्वास ही नहीं है. संविधान उनकी आंखों में चुभता है. वे नहीं चाहते कि चुनावों में जनता स्वतंत्र होकर निर्णय ले पाए. युद्ध का उन्माद पैदा कर वे लोगों के दिलो-दिमाग की ‘कंडीशनिंग’ कर देना चाहते हैं. उनके लिए युद्ध से ज्यादा जरूरी है, युद्धोन्माद. टेलीविजन को उन्होंने इसी काम के लिए लगाया हुआ है. इसी के लिए टेलीविजन और दूसरे मीडिया संस्थानों पर अनाप-शनाप पैसा विज्ञापन तथा दूसरी तरह से लुटाया जाता है. ऐसे वातावरण में युद्ध के विरोध में लिखना या बोलना, खतरे से खाली नहीं है. युद्धोन्माद भड़काने में जुटी शक्तियां आपको कभी भी राष्ट्रद्रोही घोषित कर सकती है.
घटना की शुरुआत 26 फरवरी को भारतीय वायुसेना द्वारा पाकिस्तान के बालाकोट क्षेत्र में चल रहे आतंकी ठिकानों पर हमले से हुई. भारत की ओर से दावा किया गया कि उसके निशाने पर जैशे-ए-मोहम्मद के आतंकी ठिकाने थे. हमले द्वारा वहां चलाए जा रहे आतंकवाद के प्रषिक्षण शिविर को तबाह कर दिया. खबर आई कि भारत के 12 लड़ाकू विमान पाकिस्तान में चालीस किलोमीटर तक भीतर गए; और 19 मिनट में कार्यवाही को समाप्त कर, सुरक्षित वापस लौट आए. सरकार ने हमले का शिकार हुए आतंकवादियों की संख्या नहीं बताई थी. तेज-तर्रार टेलीविजन चैनलों ने बाकी का काम कर लेना मुश्किल नहीं था. बिना किसी प्रमाण के उन्होंने भौंकना शुरू किया कि भारतीय वायुसेना के हमले में जैश-ए-मोहम्मद के 300 से ज्यादा आतंकवादी मारे गए हैं. उनमें मसूद अजहर का बहनोई यूसुफ अजहर भी शामिल है. पाकिस्तान का जवाब आया कि भारत के लड़ाकू विमान मुजफ्फराबाद सेक्टर में तीन से चार किलोमीटर तक घुस आए थे, लेकिन वायुसेना की त्वरित कार्यवाही के चलते उन्हें वापस लौटना पड़ा. पाकिस्तान ने भारतीय हमले में एक नागरिक के अलावा किसी और के हताहत होने या मारे जाने से इन्कार किया था. उधर जैश-ए-मोहम्मद के सूत्रों का कहना है कि यूसुफ अजहर हमले के समय वहां था ही नहीं.
भारतीय विमानों ने जहां हमला किया, उस इलाके को जाबा कहते हैं. जाबा एक बड़ा गांव है. वहां के निवासी मुख्यतः भेड़ पालने का धंधा करते हैं. वहां के ग्रामीणों के माध्यम से जो सूचनाएं मिली हैं, उनके अनुसार इलाके में पहले कभी आतंकी प्रषिक्षण केंद्र हुआ करता था, जिसे बाद में बंद करा दिया गया था. जाबा और मानशेरा पाकिस्तान की सीमा से सटा इलाका है, जो 2005 में भूकंप के कारण भीषण तबाही झेल चुका है. पाकिस्तान की ओर से बताया यह भी गया है कि भारतीय लड़ाकू विमानों ने केवल अंतरराष्ट्रीय सीमा को पार किया था, जो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से बाहर है. उसने भारतीय विमानों द्वारा ‘लाइन ऑफ कंट्रोल’ को पार करने से भी इन्कार किया है. साथ ही वहां किसी प्रकार के आतंकी प्रषिक्षण षिविर होने से इन्कार किया है. यह उनकी कूटनीतिक चाल हो सकती है. पाकिस्तान के सैन्य-प्रवक्ता ने दावा किया कि वह बदला लेगा. कैसे और कब? यह स्वयं पाकिस्तान तय करेगा.
पाकिस्तान इतनी जल्दी फैसला ले लेगा यह उमीद बहुत कम लोगों को थी. लेकिन युद्धोन्मादी दोनों तरफ हैं. इसलिए 27 फरवरी की तड़के पाकिस्तान के एफ-16 लड़ाकू विमानों ने, तीन अलग-अलग दिशाओं से जम्मू कश्मीर की ओर उड़ान भरी और भारतीय सीमा में घुस आए. वहां पहले से ही तैनात मिग-2000 विमानों से उनका सामना हुआ. हमले में पाकिस्तान का एक एफ-16 मार गिराया गया. भारत का एक मिग विमान क्षतिग्रस्त हुआ, जो भारत के अनुसार स्वयं क्षतिग्रस्त हुआ था. कश्मीर के बडगाम क्षेत्र में एक हेलीकॉप्टर भी गिरा, जिसमें वायुसेना के 6 जवान शहीद हो गए. पाकिस्तान का दावा है कि दो भारतीय पायलेट उसके कब्जे में हैं. भारत ने पाकिस्तान से जिनेवा संधि के अनुसार पायलेट को लौटाने के लिए कहा है. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने बातचीत का प्रस्ताव सामने रखा है. यह कूटनीतिक युद्ध है, जिसमें अभी तक बाजी पाकिस्तान के हाथ लगी है. भारतीय पायलेट की गिरफ्तारी दिखाकर वह अपनी जीत के दावे कर सकता है. भारत सरकार के पास सिवाय बड़बोले मीडिया के कुछ नहीं है. अमेरिका, चीन, आस्ट्रेलिया, यूरोपीय संघ आदि जो उससे पहले पाकिस्तान को आतंकवाद रोकने के लिए नसीहतें दिया करते थे, अब दोनों देशों से युद्ध बंद करने की अपील कर चुके हैं. जाहिर है हालिया हमलों को लेकर भारत और पाकिस्तान के अपने-अपने दावे हैं. ऐसा अकसर होता है. खासकर उन युद्धों में जो चंद लोगों की मर्जी से, उन्हीं की स्वार्थपूर्ति के लिए लड़े जाते हैं.
युद्ध और राजनीति का बहुत पुराना संबंध है. सामान्यतः इसके दो रूप सामने आते हैं. पहला युद्ध के माध्यम से तय होने वाली राजनीति. वह राजनीति जिसके लिए युद्ध आवश्यक मान लिया जाता है. दूसरा युद्ध या उसके नाम पर होने वाली राजनीति. 1971 में बांग्लादेश के मुक्ति-संग्राम में भारत सीधे-सीधे बांग्लादेश की मुक्ति सेना की मदद कर रहा था. युद्ध हुआ तो उसमें भी भारत की भूमिका थी. उस समय भविष्य की राजनीति को तय करने के लिए युद्ध अपरिहार्य मान लिया गया था. उस युद्ध के अनुकूल परिणाम निकले. एक स्वतंत्र देश का उदय विश्व मानचित्र पर हुआ. पाकिस्तान की ताकत आधी रह गई. अमेरिका द्वारा इराक पर हमला भी इसी तरह का था. उसमें भी अमेरिका सद्दाम को हटाकर अपना कोई पिटठु वहां बिठाना चाहता था. सद्दाम के पराभव के बाद अमेरिका उसमें कामयाब हुआ. वह युद्ध भी पहली श्रेणी में आता है.
पाकिस्तान में छिपे आतंकवादियों के विरुद्ध पहली सर्जिकल स्ट्राइक 29 सितंबर 2016 को हुई थी. दूसरी हाल में 26 फरवरी 2019 को. दोनों बार जनता के बीच सरकार से ज्यादा मोर्चा मीडिया ने संभाला. इन अवसरों का उपयोग उसने देश में युद्धोन्माद भड़काकर अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए किया है. गौरतलब है कि भारत द्वारा की गई सर्जिकल स्ट्राइक हालांकि घोषित युद्ध नहीं हैं. लेकिन उनके माध्यम से मीडिया ने पाकिस्तान के विरुद्ध राजनीति का ऐसा उन्माद खड़ा किया गया है कि आतंकवाद और उसके पैदा करने वाले कारकों पर विचार बहुत पीछे छूट गया है. केवल युद्धोन्माद शेष है. सरकार सर्जिकल स्ट्राइक के माध्यम से देश का सांप्रदायिक और राजनीतिक ध्रुवीकरण करना चाहती है. भाजपा नेताओं के भी ऐसे ही बयान आए हैं. वे इन घटनाओं को मोदी और भाजपा के प्रचार के नजरिये से देख रहे हैं. कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीएस येदुरप्पा कह चुके हैं कि सर्जिकल स्ट्राइक ने प्रधानमंत्री मोदी के पक्ष में लहर पैदा कर दी है. इससे उन्हें प्रदेश की 28 लोकसभा सीटों में से 22 सीटें जीतने में मदद मिलेगी. यह दिखाता है कि आगामी चुनावों में उतरने के लिए भाजपा को ऐसा ही सनसनीखेज मुद्दा चाहिए.
पिछले आम चुनावों में मोदी को ‘विकास पुरुष’ की तरह पेश किया गया था. विकास का नारा ‘टांय-टांय फिस्स’ हो चुका है. काठ की हांडी की जगह इस नारे का इस्तेमाल भी दुबारा संभव नहीं है. बीते पांच वर्षों में देश का विकास तो हुआ है. परंतु उसका लाभ सरकार के चहीते गिने-चुने उद्यमियों को पहुंचा है. आम आदमी की क्या स्थिति है, इसे बेरोजगारों की बढ़ती संख्या और बंद होते छोटे व्यवसायों से देखा जा सकता है. भाजपा जानती है कि ‘विकास पुरुष’ का मुद्दा इस बार चलने वाला नहीं है. मतदाताओं को भरमाने के लिए भाजपा को अपने नायक की नई छवि गढ़ना चाहती है. आगामी चुनावों में संभव है, मोदी जी को ‘लौहपुरुष’ जैसे किसी नए तमगे के साथ चुनावों में उतारा जाए. सो संभावना इस बात की है कि चुनावों तक सीमा पर तनाव की स्थिति कायम रहेगा. यदि विपक्ष इसपर कुछ बोलना चाहे तो उसे देशद्रोही बताकर जनता में सहानुभूति की कोशिश की जाए.
भाजपा और स्वयं मोदी जी को लगता है कि इससे आने वाले आम चुनावों में उनकी जीत सुनिश्चित हो जाएगी. इसलिए स्वयं प्रधानमंत्री भी चुनाव प्रचार में लगे हैं. यह युद्ध के नाम पर होने वाली राजनीति की दूसरी स्थिति है, जिसमें युद्ध हो या न हो, उसके नाम पर राजनीति जमकर की जाती है. यहां तक युद्ध की आशंकाओं के बीच भी राजनीति की संभावनाएं तलाशी हैं. प्रधानमंत्री के 26, 27 और 28 के कार्यक्रमों को ही देख लिया जाए तो बात समझ में आ जाती है. 26 फरवरी को उन्होंने राष्ट्रपति भवन में ‘गांधी शांति पुरस्कार’ वितरण समारोह में हिस्सा लिया. उसके बाद वे ‘इस्कान’ मंदिर जाकर तीन मीटर लंबी और 800 किलो की भव्य गीता का विमोचन किया. दोनों ही प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में युद्ध से जुड़े हैं. शांति युद्ध का प्रतिकार है तो गीता युद्ध को 18 अक्षौहिणी सेनाओं को होम कर देने वाले भीषण युद्ध को धर्मयुद्ध की तरह पेश कर, उसे ब्राह्मणीकरण के महाभियान का हिस्सा बना देती है. इस्कान मंदिर जाते हुए प्रधानमंत्री द्वारा दिल्ली मेट्रो में सफर, सारे मामले को देखकर लगता है कि सर्जिकल आपरेशन और उसके आसपास जुड़ी हुई घटनाएं, मोदी जी की छवि-निर्माण का हिस्सा थीं. पुनः 28 फरवरी को ‘मेरा बूथ सबसे मजबूत’ कार्यक्रम में पार्टी कार्यकताओं को अपने सीधे संबोधन में प्रधानमंत्री ने कहा है कि विपक्ष पाकिस्तान और आतंकवाद के मुद्दे पर राजनीति न करे. कदाचित वे कहना चाहते हैं कि पाकिस्तान, आतंकवाद और राष्ट्रवाद जैसे मुद्दों पर कहना-बोलना केवल उनकी पार्टी का कॉपीराइट है. इसका लाभ चुनावों में कितना मिलता है, यह सोचने की बात है. क्योंकि इसका असर शहरों से बाहर कम ही नजर रहता है. जहां भाजपा पहले से ही मजबूत दिखाई पड़ती है. हालांकि सांप्रदायिक विभाजन जैसे कुछ मुद्दे ऐसे हैं जो ग्रामीण हलकों में भी प्रभावशाली सिद्ध हो सकते हैं.
राजनीति किसी भी रूप में हो, उसके कुछ न कुछ निहितार्थ अवश्य होते हैं. ऐसे में जब सर्जिकल स्ट्राइक एक और दो दोनों को लेकर पाकिस्तान और भारत की ओर से अलग-अलग दावे हो रहे तो सवाल उठता है, कि उसका उद्देश्य क्या है? अगर यह कार्यवाही युद्ध में बदलती है तो उसके भारत और पाकिस्तान के लिए क्या परिणाम हो सकते हैं, इस लेख में हम इसी पर विचार करने की कोशिश करेंगे. चूंकि इसकी पहल भारत द्वारा चुनावों से ठीक पहले की गई है तो यह भी देखना होगा कि इसके बहाने सरकार और भाजपा की असल मंशा क्या है? विशेषरूप से बदलते सामाजिक परिदृश्य में देश में जब दलित और पिछड़े भाजपा के हाथों छले जाने का अनुभव कर रहे हों.
यह दावा किया जा रहा है कि भारत एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था है. बात सच हो सकती है. लेकिन इसका दूसरा पक्ष बेहद भयावह है. पिछले कुछ ही वर्षों में देश में गरीबी और अमीरी का अनुपात तेजी से बढ़ा है. पहले 2008 की भीषण आर्थिक मंदी और बाद में नोटबंदी के बाद तबाह हुए उद्योग अभी सांस नहीं ले पा रहे हैं. दूसरी ओर यह भी सच है कि इस अवधि में देश के बड़े उद्योगपतियों की पूंजी में तेजी से इजाफा हुआ है. विदेशी पूंजी को आमंत्रित करने के नाम पर रक्षा क्षेत्र में शत-प्रतिशत एफटीआई की अनुमति सरकार दे चुकी हो. भाजपा के आने के बाद दलितों और अल्पसंख्यकों पर हमलों की संख्या में वृद्धि हुई है. भाजपा के सवर्ण आरक्षण को जिस तत्परता से लागू किया है, उतनी तत्परता वह दलितों और पिछड़ों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए नहीं उठा पा रही है. जाहिर था, आने वाले चुनावों में विपक्ष इन्हीं मुद्दों को प्रमुखता से उठाता. किसानों की आत्महत्या का मुद्दा भी बड़ा था. इस मुद्दे को भी केंद्र सरकार किसानों के खाते में 500 रुपये महीने की मामूली राशि पहुंचाकर हल्का करने की कोशिश कर चुकी है.
भाजपा सरकार की चालाकियां विपक्ष से छिपी नहीं है. भाजपा के लिए नीति-निर्माण और दिशा-निर्देश का काम संघ करता है, जिसकी जड़ें पिछले पांच वर्षों में और भी गहरी हुई हैं. संघ लघु-अवधि और दीर्घावधि दोनों लक्ष्यों पर साथ-साथ काम करता है. उनकी दीर्घावधि योजना भारत को हिंदू राष्ट्र में ढालने की है, जिसके लिए वह सुनियोजित तरीके से काम करता आ रहा है. संगठन विपक्ष के पास भी हैं. लेकिन उनके पास संघ की लघु-अवधि योजनाओं के विरोध में आवाज उठाने और समयानुसार करने की क्षमता तो है, लेकिन ऐसा कोई दीर्घायामी कार्यक्रम या वैकल्पिक विचार नहीं है, जो उसकी बहुजन-विरोधी और समाज को बांटने वाली नीतियों का पर्दाफाश करते हुए समानांतर जनांदोलन को खड़ा कर सके. इसकी बहुत कुछ जिम्मेदारी बहुजन बुद्धिजीवियों की है.
मुश्किल यह है कि अभी तक बहुजन एकता केवल जातीय शोषण से जुड़े मुद्दों पर केंद्रित है. इसकी अपनी सीमाएं हैं. भारत में जातिवाद का कोढ़ ढाई-तीन हजार वर्ष पुराना है. यह सामाजिक के साथ-साथ आर्थिक शोषण का मसला भी है. इसलिए बहुजन बुद्धिजीवियों को संघ की कुटिल नीतियों का सही-सही जवाब देना है तो उसको अपनी एकता के लिए सामाजिक, सांस्कृतिक के साथ-साथ आर्थिक असमानता तथा उसके आधार पर होने वाले शोषण को भी अपने कार्यक्रम का हिस्सा बनाना पड़ेगा. पूंजीवाद की चकाचौंध के बीच समाजवाद को यद्दपि पुराना और अप्रासंगिक विचार मान लिया गया है, लेकिन एक रुपहले सपने की तरह वह आज भी करोड़ों लोगों की आंखों में बसता है. संघ के उग्र पूंजीवाद, सांप्रदायिकता, राष्ट्रवाद के नाम पर फासिज्म थोपने की साजिश से बचाव का एक रास्ता ऐसे ही किसी समानता-आधारित, समरस समाज के सपने को संकल्प में बदले की चाहत ओर इच्छा शक्ति से दिया जा सकता है. इसके लिए बहुजन समाज को न केवल बाहर बल्कि भीतर से भी बदलना होगा.
फिलहाल, आतंकवादी ठिकानों के बहाने पूरे विपक्ष को एक साथ साधने के लिए मोदीजी अपनी चाल तो चल ही चुके हैं. यह मोदी और भाजपा का ऐसा राजनीतिक दाव है जो आगे चलकर आत्मघाती भी हो सकता है.
ओमप्रकाश कश्यप